(रघुवीर सिंह पंवार )
कविता
मजदूर आज मजबूर है (labor force today)
राष्ट्रनिर्माता मजदूर आज मजबूर है दर दर की ठोकर खाकर घर से दूर है |
न रहने का आशियाना न घर
का ठिकाना सब कुछ सहकर भी परिवार से दूर
है |
मजदूर आज मजबूर है।
हजारों मिल पैदल चलकर , बच्चों को कंधे पर लेकर घर की राह पर पैदल चलने को मजबूर है |
न खाना है न जेब में
पैसा है , फिर भी अपने कर्तव्य पथ पर निष्ठावान की तरह अडिग
है |
क्योंकि राष्ट्र का
कर्णधार है ?
फिर भी सरकार के आगे
मजबूर है |
बच्चे भूखे वह भी भूखा न दाल न आटा है |
सुनी सड़को पर खून का
पसीना बहा कर चकनाचूर है |
क्योंकि वह मजबूर है ? उसकी व्यथा सुनकर प्रशासन भी चुप है |
कातर दृष्टि से देखकर कब,
आएगा ठिकाना यह सोचकर मजबूर है ?
जिसने बनाई इमारत व शिवालय लेकिन उनमें रहने के लिए आतुर है |
क्योंकि वह मजबूर है ?
यदि वह काम करना छोड़ दे
तो दुनिया चकनाचूर है |
2 जून की रोटी के लिए तरस रहा क्योंकि वह मजबूर है ?
राजनीति की रोटी सेकने वालों के लिए वह एक दाव है |
वह आज भी मजबूर है, क्योंकि पैरों में छाले व घाव है |
चिलचिलाती धूप में पैदल
चलने के लिए मजबूर है |
न खाना है न पानी न छांव है |
भगवान की अमूल्य धरोहर मजदूर आज भी मजबूर है
labor force today
Poem
Nation builder, the laborer is forced today,
he is away from home after stumbling at the rate.
There is no place to live,
no place of residence, even after suffering everything,
the worker is forced today.
After walking thousands of mills,
carrying children on the shoulders,
is forced to walk on the road to home.
There is neither food nor money in the pocket,
yet he is steadfast in his duty as a faithful.
Because the nation is the leader? Still,
it is forced in front of the government? The children are hungry,
they are neither hungry nor dal nor flour.
Suni is shattered by shedding blood and sweat on the roads.
Because he is forced?
The administration is also silent after hearing his agony.
Seeing from a dark point of view,
when, the whereabouts will come,
is compelled to think that? Who built the building and pagoda,
but is eager to live in them. Because he's forced?
If he stops working,
the world is torn apart. 2 Longing for June's bread because he is compelled?
He is a bet for those who eat the bread of politics. Forced to walk in the scorching sun. No food,
no water, no shade. God's priceless heritage laborer is still compelled