मैने जिंदगी को देख कविता
दिसंबर की कड़कती ठंड में
दिल्ली के फुटपाथों पर,
मैंने ठिठुरती जिंदगी को देखा|
भूख से बेज़ार,
अपंगों को अपनी जिंदगी से लाचार,
चंद सिक्कों के लिए,
गिड़गिड़ते देखा |
भूख से बिलबिलाते,
मासूमों को,
कूड़े करकट में से,
रोटी ढूंढ कर खाते देखा |
फुटपाथ पर रात गुजार,
कोहरे ,सर्दी,शीत लहरों के,
थपेड़े सहते,
इन्ही फुटपाथों पर,
जीते और मरते देखा |
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