रविवार, 6 नवंबर 2022

जल का दोहन ,भविष्य की समस्या

( रघुवीर सिंह पंवार )



पानी प्रकृति की अमूल्य धरोहर है | इसे सहज कर रखना मनुष्य का परम कर्तव्य है | यह  पुनीत कार्य सिर्फ मानव ही कर सकते हैं, क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य को ही बुद्धिमान श्रेष्ठ प्राणी  बनाया है , लेकिन मनुष्य ने अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए ईश्वर के इस नियम को भूल कर अपने कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया है  | और वह  भूल गया है कि प्रकृति के नियम के विरुद्ध होकर हम अपने आप को सजा दे रहे हैं  | मनुष्य में अपने आप को सिद्ध करने के लिए प्रकृति के  पंचतत्व में से एक तत्व जल का आवश्यकता से अधिक दोहन किया |       


 जिसका परिणाम हम सभी भुगत रहे हैं | इस आधुनिकता की चकाचौंध के पहले वर्ष भर नदीया,  तालाब, कुवे जल्द से लबालब भरे रहते थे  | लेकिन आज नदियों की बहने की कलरव ध्वनियां सुनने को नहीं मिलती है , क्योंकि ? मनुष्य ने इन जल संसाधनों को पूरी तरह प्रदूषित कर दिया है और इसका दोहन भी,  जल संरक्षण पर हम अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर रहे हैं | वृक्षों की कटाई लगातार बढ़ती जा रही है  | बड़े-बड़े वन , उपवन समाप्त होते जा रहे हैं  |मनुष्य वन ,उपवन  की भूमि साफ करके कल कारखाने, मल्टी बना रहे हैं ,जिससे वृक्षों की कमी हो रही है  |

इसका घातक परिणाम अतिवृष्टि ,अनावृष्टि कभी सूखा की चपेट में  राष्ट्र आरहा है | व्रक्ष विहीन  होने से पूरा    प्रदूषित हो चुका है |  लगातार ऑक्सीजन  की मात्रा में कमी और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है ,जिसके कारण पृथ्वी पर रहने वाले जीव जंतु मानव कई प्रकार की असाध्य बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं  | इसकी रोकथाम करने में वैज्ञानिक स्वास्थ्य संगठन भी चिंतित है |  पीने के लिए  शुद्ध  जल की  कल्पना करना आसान नहीं है |   जो पानी पृथ्वी पर है वह  प्रदूषण के कारण   अस्वच्छ हो रहा है , जिसके कारण बीमारियां फैल रही है |


जल प्रकृति की अमूल्य देन



पानी केवल मानव जाति के लिए ही नहीं अपितु धरती पर विचरण करने वाले जीव जंतु से लेकर पेड़, पौधे  , वनस्पतियों के लिए भी अति आवश्यक है  | जल प्रकृति की अमूल्य व नि शुल्क धरोहर है ,जिसका मूल्य हम नहीं समझ पा रहे हैं  | एवं लगातार जल का  दोहन करते जा रहे हैं |  जल को बचाने के लिए शासन सामाजिक संगठनों द्वारा काफी प्रचार प्रसार किया जा रहा है  , लेकिन हम अमल नहीं कर रहे हैं | क्योंकि हम जल के महत्व को जानकर भी अंजान बने हुए हैं ?  हमें जीवित रहने के लिए एवं आने वाली पीढ़ी के लिए जल को बचाना हमारा परम कर्तव्य है  |कभी हमने सोचा था कि पानी की  भी बोतलों में बिकेगा  |

 प्रकृति की अमूल्य धरोहर पानी हमें नि शुल्क मिलता है , लेकिन हमने अपना  स्वार्थ सिद्ध करने के लिए जल स्त्रोतों नदियों तालाबों को को प्रदूषित कर दिया है | जिसके कारण स्वच्छ जल मिलना दूभर  हो चुका है | मजबूरन हमें शुद्ध जल के लिए आरओ के जल का इस्तेमाल करना पड़ रहा है ।


वनों की कमी ,पानी का संकट



 

प्राचीन काल में पवित्र धरती  , हरियाली की चादर ओढ़ कर चारों तरफ से सुहावनी दुल्हन की तरह सजी हुई लगती थी  |  पेड़ों पर पक्षियों की मधुर कल कल ध्वनि व्यक्तियों के मन को आनंदित करती थी |वनों में ऋषि मुनि गण तपस्या में लीन रहते थे | जंगलों में नदीया , तालाब ,  झरने में शुद्ध जल बहता रहता था  ,जिसकी मधुर कल -कल छल -छल की संगीतमय ध्वनि मंत्रमुग्ध करती थी  |लेकिन आज कल्पना मात्र है  | 


Water exploitation, the problem of the future

( Raghuveer Singh Panwar )


Water is a priceless property of nature. It is the ultimate duty of man to keep it simple. This holy work can be done only by human beings, because God has made man a wise superior creature, but man has turned away from his duty by forgetting this rule of God to prove his selfishness. And he has forgotten that we are punishing ourselves by going against the law of nature. In order to prove himself in man, one of the five elements of nature, water was over-exploited

 For which we are all suffering. During the first year of the glare of this modernity, rivers, ponds, wells were filled to the fullest soon. But today the chirping sounds of flowing rivers are not heard, because? Man has completely polluted these water resources and exploiting it too, we are not focusing our attention on water conservation. The cutting of trees is increasing continuously. Big forests, groves are getting destroyed. Human beings are making factories, multis, by clearing the land of forests, groves, due to which there is a shortage of trees.

Its fatal result is excessive rain, drought, sometimes the nation is in the grip of drought. Being treeless has become completely polluted. There is a continuous decrease in the amount of oxygen and the amount of carbon dioxide is increasing, due to which the animals living on the earth are falling prey to many types of incurable diseases. Scientific health organizations are also concerned in its prevention. It is not easy to imagine pure water for drinking. The water which is on earth is getting unclean due to pollution, due to which diseases are spreading.

Water is a priceless gift of nature



Water is very important not only for the human race, but also for the animals, plants and plants that move on the earth. Water is a priceless and free heritage of nature, whose value we are not able to understand. and are continuously exploiting the water. To save water, a lot of publicity is being spread by the government social organizations, but we are not implementing it. Because we remain ignorant even knowing the importance of water? It is our utmost duty to save water for us to survive and for the coming generation. Sometimes we thought that even water would be sold in bottles.

 Water is the priceless heritage of nature, we get free water, but to prove our selfishness, we have polluted the water sources, rivers, ponds. Due to which it has become difficult to get clean water. We are compelled to use RO water for pure water.

lack of forests, water crisis




In ancient times, the sacred earth, covered with a sheet of greenery, looked like a beautiful bride on all sides. The melodious sound of birds on the trees used to delight the minds of the people. In the forests, the sages and sages used to be absorbed in penance. Pure water used to flow in the rivers, ponds and springs in the forests, whose melodious musical sound of deceit and deceit used to enchant. But today it is just imagination.


मैने जिंदगी को देखा

मैने जिंदगी को देख     कविता दिसंबर की कड़कती ठंड में  दिल्ली के फुटपाथों पर,   मैंने  ठिठुरती जिंदगी को देखा|  भूख से बेज़ार, अपंगों को अपनी...