शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

सुन रही हो माँ

 

सुन रही हो माँ



इन्दु सिन्हा"इन्दु कहानीकार/कवियत्री)
अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भारत (महिला विंग)
 

 (कविता )

देखो माँ ,

हर वर्ष महिला दिवस पर

तुम्हारा गुणगान किया जाता है,

उस एक दिन में,

भर दिए जाते है पन्ने,

तुम्हारी महानता के,

माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नहीं,

कहीं झूठ कहीं सच,

कही भ्रम का लिबास पहना कर,

तुम्हारी महिमा बताई जाती है,

ऐसा लगता है,

काँच के शोकेस को चमका कर,

कोई मूर्ति रख दी हो,

देवी कहकर तुमको तुमको,

प्यार के रैपर से कवर किया जाता है,

लेकिन कोई नही लिखता,

कोई नहीं गाता,

महानता के पीछे छिपे,

पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को,

दिन भर करती रहती,

तुम्हारी जिम्मेदारी को,

आधी रात तक बर्तन घिसती,

तुम्हारी उंगलियों को,

तुम्हारे टूटे सपनों को,

छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर,

होठों की नकलीमुस्कान को,

पल पल मरती इच्छाओं पर,

तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर,

घर घर ऐसी ही होती है माँ,

तुम सुन रही हो ना माँ ?






(Poem )

Indu Sinha"Indu



look, mom

every year on women's day
you are praised,
in that one day,
Pages are filled
of your greatness,
Mother is great, we are nothing without mother.
Some lie, some truth
wearing a cloak of illusion,
Your glory is told,
It seems like,
shining glass showcases,
Have you kept an idol,
By calling you, goddess,
is covered with wrappers of love,
But no one writes
no one sings
hiding behind greatness,
To your running around the house,
doing it all day long,
your responsibility,
Dishes rustle till midnight,
your fingers,
your broken dreams,
Secretly on the tears shed,
to the fake smile on the lips,
On dying desires moment by moment,
on your lost personality,
Mother is like this in every house,
are you listening, mom?

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