( रघुवीर सिंह पंवार )
बच्चे के ऊपर बोझ
बात बड़ी छोटे मुह लेकिन ,जब के लोग विचारों।
मुझ पर लदी किताबें अब मेरा बोझ उतारो।
झरनों को तो जंगल में झरने की आजादी।
पर मुझे नहीं मस्ती में रहने की आजादी।
बिन समझे बिन बुझे ही केवल लीखते ही रहना |
क्या घर में क्या बाहर केवल रटते ही रहना ?
खेलकूद में जी भर कर समय कभी ना पाऊं |
गुलदस्ते में कलियों सा घरमें ही मुरझाऊ |
फूलों को तो फूलों जैसी खिलने की आजादी |
भंवरी को भी भिनभिनाने की
है ,देखो आजादी |
फूल फूल के रस को है, पीने की आजादी |
पंछी को भी पंछी जैसे उड़ने की आजादी |
पर मुझ बच्चे को अब बच्चे सा ही रहने दो |
मुझको तो अब अपने ही बचपन में मिलने दो |
इस दुनिया में अब अपनी ही भाषा पढ़ने दो |
मुझको भी तो फूलों जैसा अब तो खिलने दो |
बात बड़ी छोटे मुंह लेकिन जब के लोग विचारों |
मुझ पर लदी किताबें अब तो मेरा बोझ उतारो |
...........................................................................................................................
burden of child
Talk is very small, but when people think.
Books loaded on me, now take off my burden.
The springs have the freedom to spring in the forest.
But I don't have the freedom to live in fun.
Without understanding, without extinguishing, just keep on writing.
Should we just keep on rote inside or outside?
Never get enough time to play sports.
Wither at home like buds in a bouquet.
Flowers have the freedom to bloom like flowers.
Bhanwari also has to hum, look at the freedom.
Flowers belong to flower's juice, freedom to drink.
Even a bird has the freedom to fly like a bird.
But let me child be like a child now.
Now let your own language be taught in this world.
Let me also bloom like flowers now.
Big small mouths talk but when people's thoughts |
The books loaded on me now take off my burden.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें