शुक्रवार, 27 जनवरी 2023

मैने जिंदगी को देखा




मैने जिंदगी को देख     कविता


दिसंबर की कड़कती ठंड में
 दिल्ली के फुटपाथों पर,
  मैंने  ठिठुरती जिंदगी को देखा|
 भूख से बेज़ार,
अपंगों को अपनी जिंदगी से लाचार,
 चंद सिक्कों के लिए,
 गिड़गिड़ते देखा |
 भूख से बिलबिलाते,
 मासूमों को,
 कूड़े करकट में से,
 रोटी ढूंढ कर खाते देखा |
फुटपाथ पर रात गुजार,
 कोहरे ,सर्दी,शीत लहरों के,
थपेड़े सहते,
इन्ही फुटपाथों पर,
जीते और मरते देखा |



बुधवार, 30 नवंबर 2022

थोड़ा हम भी जी ले

 

शाहरुख की देवदास में     

इन्दु सिन्हा"इन्दु"


पारो कहती है चंद्रमुखी से,

आओ ना थोड़ा हम भी जी ले,

लेकिन

कहा जी पा रहे है हम,

आज की फिल्में थोड़ा सुकून ही देती है,

उस पर भी पुराने गीतों को,

नयी शक्ल में ढाल दिया जाता है

पर वो मिठास और वो अंदाज नही,

जो रात कली इक ख्वाब में आयी में था,

सांवली सूरत में था,

हाथों में किताब और बालों में गुलाब में था,

दो चोटियों से खेलती ,

रेखा की शोखियों में था,

पल पल दिल के पास तुम रहती हो,

प्रेम पत्रों के पीछे भागती,

राखी के शर्मीलेपन में था,

राज कपूर के आवारा भोले अंदाज में था,

रिमझिम चले सावन में मौसमी के दांतों में था,

भीगे भीगे अमिताभ की आँखों की गहराई में था,

होंठ का कोना दबाते जितेंद्र की,

आशिकी में था,

सूनी सड़क के कोने पर इंतजार करती,

लड़की की घबराहट में था,

पी लेती हूँखो जाती हूँ,

उस अनोखे प्रेम के सुरूर में,

थोड़ा ख्बाबों में ही जीये,

आओ थोड़ा हम भी जी ले !

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इन्दु सिन्हा"इन्दु"

कहानीकार/कवयित्री

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Little hum Bhi ji le


In Shahrukh's Devdas
Paro says from Chandramukhi,
Come on, let's live.
But
Kaha ji pa rahe hai hum,
Today's movies are a little relaxing.
Even the old songs,
A new shape is given
But that sweetness and not that guess,
That night I had a dream in Kali,
was in dusky surat,
I had a book in my hands and a rose in my hair.
playing with two peaks,
Rekha's hobbies were
You are always near my heart,
running after love letters,
Rakhi was shy,
Raj Kapoor's Awara was in naive style,
It was in the teeth of the season in the rainy savannah,
Burge Burge was in the depth of Amitabh's eyes.
Jitendra pressed the corner of his lips,
was in love
Suni waits on the street corner,
The girl was nervous.
I drink, I get lost,
In the heart of that unique love,
Live in a little dream,
Let's live a little hum!
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Indu Sinha"Indu"
Storyteller/Poet

शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

सुन रही हो माँ

 

सुन रही हो माँ



इन्दु सिन्हा"इन्दु कहानीकार/कवियत्री)
अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भारत (महिला विंग)
 

 (कविता )

देखो माँ ,

हर वर्ष महिला दिवस पर

तुम्हारा गुणगान किया जाता है,

उस एक दिन में,

भर दिए जाते है पन्ने,

तुम्हारी महानता के,

माँ महान है, माँ बगैर हम कुछ नहीं,

कहीं झूठ कहीं सच,

कही भ्रम का लिबास पहना कर,

तुम्हारी महिमा बताई जाती है,

ऐसा लगता है,

काँच के शोकेस को चमका कर,

कोई मूर्ति रख दी हो,

देवी कहकर तुमको तुमको,

प्यार के रैपर से कवर किया जाता है,

लेकिन कोई नही लिखता,

कोई नहीं गाता,

महानता के पीछे छिपे,

पूरे घर मे तुम्हारी भागदौड़ को,

दिन भर करती रहती,

तुम्हारी जिम्मेदारी को,

आधी रात तक बर्तन घिसती,

तुम्हारी उंगलियों को,

तुम्हारे टूटे सपनों को,

छिप छिप कर बहाए आँसुओं पर,

होठों की नकलीमुस्कान को,

पल पल मरती इच्छाओं पर,

तुम्हारे खोए व्यक्तित्व पर,

घर घर ऐसी ही होती है माँ,

तुम सुन रही हो ना माँ ?






(Poem )

Indu Sinha"Indu



look, mom

every year on women's day
you are praised,
in that one day,
Pages are filled
of your greatness,
Mother is great, we are nothing without mother.
Some lie, some truth
wearing a cloak of illusion,
Your glory is told,
It seems like,
shining glass showcases,
Have you kept an idol,
By calling you, goddess,
is covered with wrappers of love,
But no one writes
no one sings
hiding behind greatness,
To your running around the house,
doing it all day long,
your responsibility,
Dishes rustle till midnight,
your fingers,
your broken dreams,
Secretly on the tears shed,
to the fake smile on the lips,
On dying desires moment by moment,
on your lost personality,
Mother is like this in every house,
are you listening, mom?

रविवार, 20 नवंबर 2022

किसान की दयनिय हालत

घुवीर सिंह पंवार    ( लेख  किसान )

 भारत देश कृषि प्रधान देश है भारत देश की एक तिहाई आबादी कृषि करके अनाज पैदा कर देशवासियों के पेट के  भूख की ज्वाला को शांत करते हैं | लोग अन्न  ग्रहण करके जीवित रहते हैं  |इसका श्रेय किसान को जाता है | दुनिया को अन्न  देने वाले किसान दिन-रात चिलमिलाती  धूप ,कंपकपाती ठंड और बारिश में कार्य करके किसान खेती करते हैं  | तभी कहीं जाकर दुनिया के लोगों का पेट भर पाता है लेकिन किसान को उसकी मेहनत का फल उसके कार्य के अनुसार नहीं मिल पाता है | कभी कम वर्षा , अतिवृष्टि , अनावृष्टि ओलों से उसकी फसल नष्ट हो जाती हैं | इस कारण वह अपने परिवार का भरण पोषण ,बच्चों की उच्च शिक्षा, बेटे बेटियों की शादी के अरमान भी पूरा  नहीं कर पाता है  | हमारे देश के किसान की हालत दयनीय होती जा रही है |

बैंक से लोन लेकर किसान खाद बीज दवाइयां लेकर खेत में  बुवाई करता है  | उसको मालूम नहीं रहता कि जो बीच खेत में बिखेरे हैं  ,उस से उस को लाभ होगा या हानी , फिर भी सागर जैसा हृदय रखने वाला किसान चुनौती स्वीकार करके अनवरत अपना काम करता रहता है |  यदि अच्छी फसल पैदा होती है तो वह खुश होकर भगवान का धन्यवाद करता है, मन में कई प्रकार के सपने देखताहै सोचता है बच्चों की शिक्षा बेटे बेटियों की शादी अच्छा घर बनाने की बात , जब फसल बेचने मंदी जाता है तो उसके अनाज की कीमत बोली लगाकर व्यापारी तय करते हैं  , और वह कातर दृष्टि से उनके मुंह की तरह देखता है | उसको उचित  भाव मिलते हैं या नहीं  | मजबूरी में अपनी फसल का सौदा करता है  | 

किसान को उसकी लागत का मूल्य भी नहीं मिल पाता है | जब वह आंदोलन करता है , अपने हक के लिए तो उसे आतंकवादी, देशद्रोही की उपाधि से नवाजा जाता है | किसान पशु पालन करके दूध बाजार में बेचता  है यदि   दूध के पैसे बढ़ जाते हैं तो लोग आंदोलन करतेहैं कि दूध की कीमत कम करो  | सब्जियों के भाव बढ़ने पर लोग सड़क पर आकर आक्रोशित होते हैं |  शराब महंगी होती है तो उसका विरोध नहीं करते हैं , और बड़ी शान से खरीदते हैं |  किसान द्वारा उत्पादित फसलों के भाव बढ़ने पर हजारों रुपए की नौकरी करने वाले लोग जिन को उनकी औकात के हिसाब से ज्यादा वेतन मिलता है  | वे  किसान की फसलों के भाव बढ़ने पर जल से निकली हुई मछली की तरह तड़पने लग जाते हैं | कैसी विडंबना है हमारे देश की  सरकार किसानों की फसलों में दाम हर वर्ष बढाती हैं जो  ऊंट के मुंह में जीरे की तरह  होती है |

किसानों के द्वारा उत्पादित फसलों के भाव भी कर्मचारियों अधिकारियों के वेतन के हिसाब से बढ़ाने चाहिए तभी देश का किसान खुशहाल आत्मनिर्भर बन पाएगा |  शासन किसान का अनाज समर्थन मूल्य पर खरीदती है ,उसको भी   बेचने के लिए किसान को  से दिन लग जाते है  | भूखा ,प्यासा किसान लंबी कतार में लगता है जब कहीं जाकर उसका माल बिकता है | वही अनाज सरकार जो किसान से खरीदती है, वह सरकारी बीज निगम से किसान  खरीदता  है ,तो उसको दो या तीन गुना ज्यादा कीमत पर सरकार किसान को देती  है |




अर्थशास्त्री अरस्तु ने सही कहा है ,किसान कर्ज में जन्म लेता और कर्ज में ही मर जाता है | दुनिया के लोगों के पेट भरने वाला किसान भूखा सोता है |  यदि  समय प बैंक का कर्ज , बिजली बिल  नहीं चुका पाता है तो उसको प्रताड़ित किया जाता है |  मुकदमे दायर किए जाते हैं  | इस त्रासदी से तंग आकर किसान  आत्महत्या कर लेता है  | ऐसे कई उदाहरण हमारे देश  में देखने को मिलते हैं  | उद्योगपतियों , व्यापारियों के लोन  सरकार माफ कर देती है , लेकिन किसान की  बात आती है ,तो सरकार कहती है, सरकार के पास बजट नहीं है |

यदि कोई व्यक्ति सरकारी विभाग में कार्य करता है तो उसे वेतन मिलता है | सेवानिवृत्त होने पर पेंशन मिलती है |  हम उसका विरोध नहीं करते हैं | क्योंकि उसने देश सेवा की लेकिन दुख इस बात का है कि किसान जीवन भर मेहनत करता है  , जब वह  70 -80 वर्ष का हो जाता है तो वह शारीरिक  रूप से कमजोर होता है | सरकार उसको पेंशन क्यों नहीं देती ?  उसने भी एक सरकारी कर्मचारी , अधिकारी की तरह  दिन -रात काम का समय निश्चित ही नहीं है , खेतों में काम करके देश सेवा की है ,उसको भी बुढ़ापे में पेंशन की जरूरत होती है इस  और सरकार का ध्यान नहीं है  | 

एक बार जब कोई व्यक्ति विधायक, सांसद , मंत्री बन जाता है, तो उसके वेतन ,भत्ते ,डीजल, पेट्रोल ,यात्रा टेलीफोन, कुल मिलाकर लाखों रुपए प्राप्त करते हैं ,लेकिन किसान की  बात आने पर सरकार के पास पैसे नहीं है का जुमला चालू हो जाता है | यदि आप भगवान को मानते हो तो मंदिर की जगह कड़कड़ाती ठंड में रात के समय खेत में जाकर देखो किसान अपने शरीर की परवाह न करके फसलों को पानी देता है ,आप फिर कल्पना करो कि किसान निस्वार्थ भाव से दुनिया के लोगों लोगों की पेट की भूख की ज्वाला शांत करने के लिए अपने आप को समर्पित करता है  | उसके काम करने का समय निश्चित नहीं होता है |  

सप्ताह ,न महीने में अवकाश होता है ,जैसे सूर्य भगवान बिना अवकाश के नियमित रूप से प्रकाश करते हैं, उसी प्रकार किसान भी लगातार काम करता रहता है  | उसे वेतन  , भत्ते सुरक्षा,  बीमा , पगार नहीं मिलती है |  वह अपने दम पर कड़ी मेहनत कर अपने परिवार का भरण पोषण करता है, तभी कहीं जाकर उसके परिवार को कुछ सुविधा मिल पाती है | वह भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान,  कहने में तो किसान अन्नदाता है लेकिन वास्तविकता किसी से छिपी नहीं भारत देश लोकतांत्रिक देश है जहां पंचायत से लेकर लोकसभा के चुनाव हर वर्ष होते रहते हैं लाखों करोड़ों रुपए खर्च होते हैं  | सरकार गिरती है बनती है विधायक खरीदे जाते हैं बेचे जाते हैं  | 

राजनीतिक पार्टियां चुनाव जीतने के लिए किसानों से  मत प्राप्त करने के लिए कर्ज माफी, फ्री बिजली   की घोषणा करती है  | और सरकार बनने के बाद सभी वादे जुमले हो जाते हैं |





plight of farmer


India is an agricultural country. One-third of India's population pacifies the hunger of the countrymen by producing grains by doing agriculture. People survive by taking others. The credit for this goes to the farmer. Farmers who give food to the world do farming by working day and night in scorching sun, shivering cold and rain. Only then the stomach of the people of the world is filled by going somewhere. But the farmer does not get the fruits of his hard work according to his work. Sometimes his crops are destroyed by less rain, excessive rain, no rain hail. Because of this, he is not able to fulfill the wishes of his family, higher education of children, marriage of sons and daughters. The condition of the farmers of our country is becoming pathetic.

Taking a loan from the bank, the farmer sows in the field by taking fertilizers, seeds and medicines. He doesn't know whether the beach scattered in the field will benefit or harm him, yet a farmer with a heart like an ocean accepts the challenge and continues to do his work. If a good crop is produced, he is happy and thanks God, thinks of many types of dreams in his mind, thinks about the education of children, marriage of sons and daughters, building a good house, when he goes to sell the crop, he bids the price of his grain. Traders decide by applying, and he looks like their mouth with a keen eye. Whether he gets fair prices or not. Under compulsion, he deals with his crops.



The farmer does not even get the value of his cost. When he agitates, for his rights, he is awarded the title of terrorist, traitor. The farmer rears animals and sells milk in the market, if the money for milk increases, then people agitate to reduce the price of milk. When the prices of vegetables increase, people come on the road and get angry. If liquor is expensive then do not oppose it, and buy it with great pride. When the price of the crops produced by the farmer increases, the people doing jobs worth thousands of rupees, who get more salary according to their status. When the prices of the farmer's crops increase, they start suffering like a fish out of water. What an irony, the government of our country increases the prices of farmers' crops every year, which is like cumin in the mouth of a camel.

The prices of the crops produced by the farmers should also be increased according to the salaries of the employees and officers, only then the farmers of the country will be able to become happy and self-reliant. The government buys the farmer's grain at the support price, it takes 3 to 4 days for the farmer to sell that too. Hungry, thirsty farmers stand in long queues when their goods are sold somewhere. The same grain that the government buys from the farmer, the farmer buys it from the Government Seed Corporation, then the government gives it to the farmer at two or three times more cost.


Economist Aristotle has rightly said, a farmer is born in debt and dies in debt. The farmer who feeds the people of the world sleeps hungry. If the bank loan is not able to pay the electricity bill on time, then it is harassed. Lawsuits are filed. Fed up with this tragedy, the farmer commits suicide. Many such examples are seen in our country. The government waives the loans of industrialists and traders, but when it comes to farmers, the government says that the government does not have a budget.
If a person works in the government department then he gets salary. Pension is available on retirement. We do not oppose it. Because he served the country, but the sad thing is that the farmer works hard throughout his life, when he turns 70-80 years old, he is physically weak. Why doesn't the government give him pension? He is also a government employee, working time day and night is not fixed like an officer, he has served the country by working in the fields, he also needs pension in his old age and the government does not care about this.
Once a person becomes an MLA, MP, Minister, his salary, allowances, diesel, petrol, travel telephone, in total, he receives lakhs of rupees, but when it comes to the farmer, the government has no money. becomes | If you believe in God, then go to the field instead of the temple in the bitter cold at night and see the farmer watering the crops without caring for his body, then imagine that the farmer selflessly feeds the people of the world. dedicates himself to pacify the flame of His working time is not fixed. There is a break in a week or a month, just as the Sun God shines regularly without a break, in the same way the farmer also works continuously. He does not get salary, allowances, security, insurance, salary. He maintains his family by working hard on his own, only then his family gets some facilities by going somewhere. That too is like a cumin in the mouth of a camel, in saying that the farmer is the provider of food, but the reality is not hidden from anyone. India is a democratic country, where elections from Panchayat to Lok Sabha are held every year, lakhs of crores of rupees are spent. Government falls, is formed, MLAs are bought and sold.
Political parties announce loan waiver, free electricity to get votes from farmers to win elections. And after the formation of the government, all the promises become jumlas.

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

कीमत क्या ?

                                                                             कविता

                                                                        
                                                           ( रघुवीर सिंह पंवार )   

सुगंध नहीं सुंदरता में तो उस सुमन की कीमत क्या ?

 प्रेम नहीं मानवता में तो उस हृदय की कीमत क्या ?

हरियाली नई हरे हृदय तो उस बाग की कीमत क्या  ?

स्वच्छ  जल जो नहीं मिले तो उस गागर की कीमत क्या ?

  हर प्राणी प्यासा जाए तो, उस सागर की कीमत क्या ?

 सौगंध खाकर नहीं निभाए तो उस वचन की कीमत क्या  ?

ब्रह्म ज्ञान का नहीं ज्ञाता   तो, उस ब्राह्मण की कीमत क्या ?

 आत्मशांति  जो नहीं मिले तो, विश्व शांति की कीमत क्या ?

  रक्षक ही बन जाए भक्षक ,तो रक्षा की कीमत क्या  ?



 बागार ही खा जाए खेत, तो रखवाले की कीमत क्या ?

 सठ न सुधरे सदुपयोग से , तो सत्संग की कीमत क्या  ?

 शिक्षित होकर शिक्षा नहीं दे ,तो उस शिक्षक कीमत क्या ?

परोपकार जो नहीं किया , तो पद पाने की कीमत क्या ?

 आए अतिथि आदर नहीं तो आतिथ्य की कीमत क्या  ?

साथी होकर साथ ना निभाए तो उस साथी की कीमत क्या ?

भाई भाई मैं नहीं एकता तो भाईचारे की कीमत क्या   ?

 सुगंध नहीं सुंदरता में तो  ,उस सुमन की कीमत क्या ?




what is the price

        Poem  (  RAHJUVIR SINGH PANWAR ) 

If there is no fragrance in beauty, then what is the value of that Suman?
 If there is no love in humanity then what is the value of that heart?
Greenery new green heart then what is the value of that garden?
If clean water is not available then what is the value of that garg?
  If every living being goes thirsty, then what is the value of that ocean?
 What is the value of that promise if you don't keep it after taking an oath?
If Brahma does not know the knowledge, then what is the value of that Brahmin?
 If you don't get self-peace, then what is the value of world peace?


  If the protector becomes the eater, then what is the value of protection?
 If the farmer eats up the field, then what is the value of the caretaker?
 If sixty does not improve with good use, then what is the value of satsang?
 If educated does not give education, then what is the value of that teacher?
If you have not done charity, then what is the value of getting a position?
 If the guest does not show respect then what is the value of hospitality?
What is the value of that companion, if he does not cooperate with you as a companion?
Brothers and brothers, if there is no unity then what is the value of brotherhood?
 If there is no fragrance in beauty, then what is the value of that Suman?

रविवार, 13 नवंबर 2022

बच्चे के ऊपर बोझ

 ( रघुवीर सिंह पंवार ) 

                                                           बच्चे  के  ऊपर बोझ

 बात बड़ी छोटे मुह लेकिन ,जब के लोग विचारों।

मुझ पर लदी किताबें अब मेरा बोझ  उतारो।

 झरनों को तो जंगल में झरने की आजादी।

पर मुझे नहीं मस्ती में रहने की आजादी। 



बिन समझे बिन बुझे ही केवल लीखते  ही रहना |

 क्या घर में क्या बाहर केवल रटते ही रहना ?

 खेलकूद में जी भर कर समय कभी ना पाऊं |

 गुलदस्ते में कलियों सा घरमें ही मुरझाऊ |

 फूलों को तो फूलों  जैसी खिलने की  आजादी  |

भंवरी को भी भिनभिनाने  की है ,देखो आजादी |



फूल फूल के रस को है, पीने की आजादी |

 पंछी को भी पंछी जैसे उड़ने की आजादी |

 पर मुझ बच्चे को अब बच्चे सा ही रहने दो |

मुझको तो अब अपने ही बचपन में मिलने दो |

इस दुनिया में अब अपनी ही भाषा पढ़ने दो |

मुझको भी तो फूलों जैसा अब तो खिलने दो |

 बात बड़ी  छोटे मुंह लेकिन जब के लोग विचारों |

 मुझ पर लदी किताबें अब तो मेरा बोझ उतारो |

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burden of child

  Talk is very small, but when people think.
Books loaded on me, now take off my burden.
  The springs have the freedom to spring in the forest.
But I don't have the freedom to live in fun.
  
Without understanding, without extinguishing, just keep on writing.
  Should we just keep on rote inside or outside?
  Never get enough time to play sports.
  Wither at home like buds in a bouquet.

  Flowers have the freedom to bloom like flowers.
Bhanwari also has to hum, look at the freedom.
Flowers belong to flower's juice, freedom to drink.
  Even a bird has the freedom to fly like a bird.
  But let me child be like a child now.


Now let your own language be taught in this world.
Let me also bloom like flowers now.
  Big small mouths talk but when people's thoughts |
  The books loaded on me now take off my burden.



मैने जिंदगी को देखा

मैने जिंदगी को देख     कविता दिसंबर की कड़कती ठंड में  दिल्ली के फुटपाथों पर,   मैंने  ठिठुरती जिंदगी को देखा|  भूख से बेज़ार, अपंगों को अपनी...