बुधवार, 2 नवंबर 2022

महात्मा बुद्ध शांति और अहिंसा के अग्रदूत

 




                             महात्मा बुद्ध शांति और अहिंसा के अग्रदूत


भारत भूमि देवो की भूमि है यह बात सारे संसार को विदित है | इस पावन धरा पर कई तेजस्वी ,प्रतापी ,सत्यवादी महापुरुषों ने अवतरित होकर इस वसुंधरा को पावन किया |इस भूमि का कण कण पवित्र है  | एसा कहा गया हें ,चंदन हें इस देश की माटी तपोभूमि हर गांव हें इस देश की माटी की मिट्टी भी ललाट पे लगाई जाती है | एसी भारत भूमि पर गौतम बुद्ध शांति और अहिंसा के अग्रदूत बनकर अवतरित हुवे | महात्मा बुद्ध जब इस भूमि पर आये  उस समय सम्पूर्ण भारत देश अशांति ,हिंसा , अ धर्म अंधविश्वास और कई प्रकार की कुरीतियो से ग्रस्त  था |

महात्मा बुद्ध का आगमन एक ऐसे युग प्रवर्तक रूप में हुआ ,उन्होंने न भारतवर्ष अपितु संसार के अनेक राष्ट्रों में अपने ज्ञान के प्रकाश पुंज से संसार वासियों के मन में ज्ञान की ज्योति प्रज्वलित  की व जनमानस को  ज्ञान का पान कराया  |

महात्मा बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था  |उन्हें गौतम बुद्ध के नाम से भी जाना जाता था |उनका गौतम नाम उनकी गोत्र के नाम से रखा गया था | उनका जन्म  क्षत्रिय कुल के राजा सुद्धोदन  के यंहा सन 569 ईसवी पूर्व लुम्बनी नामक स्थान पर हुवा था | उनकी माता का नाम महामाया था |महारानी महामाया पुत्र जन्म के सातदिन बाद ही इस संसार को छोड़ कर परमपिता  को प्यारी हो गई | सिद्धार्थ का लालन पालन उनकी माँ की बड़ी बहन  गौतमी ने किया  | ज्योतिषियों ने बालक सिद्धार्थ की जन्मपत्रिका का गहन अध्यन कर भविष्यवाणी की थी की यह तेजस्वी बालक बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा या तपस्या के उपरांत महान संत , संत बनाने की बात सुनकर पिता चिंतित हो गए | उन्होंने बालक के लिए राजमहल में  आमोद ,प्रमोद के सभी साधनों की व्यवस्था  कर दी |बचपन से ही सिद्धार्थ करुणायुक्त ,अत्यंत गंभीर व शांत विचारो के थे | उनकी जानने की इच्छा प्रबल थी | वे जिज्ञासु थे , अपने आसपास होने वाली घटनाओ का वे गहन अवलोकन करते थे |राजमहल के ठाट बाट उन्हें रास नहीं आते थे |बड़े होने पर भी उनकी प्रवर्ती नहीं बदली | पिता ने उनकी शादी एक सुन्दर  कन्या  से कर डी जिसका नाम यशोधरा था |उनको एक पुत्र रत्न प्राप्त हुवा जिसका नाम राहुल रखा गया ,परन्तु सिद्धार्थ का मन गृहस्थी में नहीं रमा |

एक दिन व भ्रमण के लिए निकले । रास्ते में रोगी वृद्ध और मृतक को देखा तो  जीवन की सच्चाई का पता चला । क्या मनुष्य की यही गति हैयह सोचकर वे बेचैन हो उठे । फिर एक रात्रिकाल में जब महल में सभी सो रहे थे सिद्धार्थ चुपके से उठे और पत्नी एव बच्चों को सोता छोड़ वन को चल दिए।



उन्होंने वन में कठोर तपस्या आरंभ की । तपस्या से उनका शरीर दुर्बल हो गया परंतु मन को शांति नहीं मिली । तब उन्होंने कठोर तपस्या छोड्‌कर मध्यम मार्ग चुना । अंत में वे बिहार के गया नामक स्थान पर पहुँचे और एक पेड़ के नीचे ध्यान लगाकर बैठ गए । एक दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई । वे सिद्धार्थ से ‘ बुद्ध ‘ बन गए । वह पेड़ ‘ बोधिवृक्ष ‘ के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध सारनाथ पहुंचे । सारनाथ में उन्होंने शिष्यों को पहला उपदेश दिया । उपदेश देने का यह क्रम आजीवन जारी रहा । इसके लिए उन्होंने देश का भ्रमण किया । एक बार वे कपिलवस्तु भी गए जहाँ पत्नी यशोधरा ने उन्हें पुत्र राहुल को भिक्षा के रूप में दे दिया । अस्सी वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध निर्वाण को प्राप्त हुए ।

बुद्ध के उपदेशों का लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा । अनेक राजा और आम नागरिक बुद्ध के अनुयायी बन गए । उनके अनुयायी बौद्ध कहलाए । बौद्ध धर्म को अशोककनिष्क तथा हर्ष जैसे राजाओं का आश्रय प्राप्त हुआ । इन राजाओं ने बौद्ध धर्म को श्रीलंकाबर्मासुमात्राजावाचीनजापानतिब्बत आदि देशों में फैलाया ।



भगवान बुद्ध के  विचार---

  --सभी गलत कार्य की नींव मन से होता है यदि मन परिवर्तित और पवित्र हो जाए तो गलत कार्य नहीं रह सकता है |

   -  क्रोध के लिए सजा नहीं मिलती बल्कि अपने क्रोध से की गयी गलती के लिए सजा मिलती है. |

   -घृणा को घृणा से खत्म नहीं किया जा सकता है , बल्कि इसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है , जो की एक प्राकृतिक सत्य है |

 - जो बीत गया उसमे नही उलझना चाहिए और ना ही भविष्य को लेकर ज्यादा चिंतित रहना चाहिए , बल्कि हमे वर्तमान में ही जीना चाहिए ,यही ख़ुशी से जीने का रास्ता है. |

 - आपके पास जो कुछ भी है  उसे बढ़ा-चढ़ा कर मत बताइएऔर ना ही दूसरों से ईर्ष्या कीजिये. जो दूसरों से ईर्ष्या करता है उसे मन की शांति नहीं मिलती |

-   सत्य के मार्ग पे चलते हुए कोई दो ही गलतियाँ कर सकता हैपूरा रास्ता ना तय करनाऔर इसकी शुरआत ही ना करना.

   - ख़ुशी अपने पास बहुत अधिक होने के बारे में नहीं है. ख़ुशी बहुत अधिक देने के बारे में है|

( रघुवीर सिंह पंवार )


                               Mahatma Buddha the pioneer of peace and non-violence


India is the land of the gods, this thing is known to the whole world. Many brilliant, majestic, truthful great men descended on this holy land and made this Vasundhara holy. Every particle of this land is holy. It has been said that sandalwood is the soil of this country,i is every village, the soil of this country's soil is also applied on the forehead. Gautam Buddha incarnated as a harbinger of peace and non-violence on this land of Bharat. When Mahatma Buddha came to this land, at that time the whole of India was suffering from unrest, violence, non-religion, superstition and many kinds of evils.


Mahatma Buddha arrived in such an era, he ignited the light of knowledge in the minds of the people of the world with the light of his knowledge not only in India but in many countries of the world and made the people drink the knowledge.



Mahatma Buddha's childhood name was Siddhartha. He was also known as Gautam Buddha. His name Gautam was named after his gotra. He was born in the place of Lumbini in the year 569 AD in the place of King Suddhodana of Kshatriya clan. His mother's name was Mahamaya. Queen Mahamaya left this world after seven days of son's birth and became dear to the Supreme Father. Siddhartha was brought up by his mother's elder sister Gautami. The astrologers had predicted by studying the birth chart of the child Siddhartha that this brilliant child would grow up to become either a Chakravarti emperor or after austerity, the father became worried after hearing about making a great saint, a saint. He made arrangements for all the means of amusement, pleasure in the palace for the child. Since childhood, Siddhartha was compassionate, very serious and calm-minded. His desire to know was strong. He was inquisitive, he used to observe the events happening around him deeply. He did not like the beauty of the palace. Even after growing up, his attitude did not change. His father married him to a beautiful girl whose name was Yashodhara. He got a son Ratna, who was named Rahul, but Siddhartha's mind did not rest in the household.




Went out for a day's excursion. On the way, when the patient saw the old and the deceased, then the truth of life came to know. They got restless thinking whether this is the speed of man. Then one night, when everyone was sleeping in the palace, Siddhartha got up secretly and left his wife and children sleeping and left for the forest.




He started severe penance in the forest. His body became weak due to penance, but his mind did not get peace. Then he chose the middle path, leaving severe penance. Finally he reached a place called Gaya in Bihar and sat meditating under a tree. One day he attained enlightenment. He became 'Buddha' from Siddhartha. That tree became famous as 'Bodhi tree'.


After attaining enlightenment, Buddha reached Sarnath. He gave the first sermon to the disciples at Sarnath. This sequence of preaching continued throughout life. For this he toured the country. Once he also went to Kapilvastu where his wife Yashodhara gave him son Rahul as alms. At the age of eighty, Gautam Buddha attained Nirvana.


Buddha's teachings had a profound effect on the people. Many kings and common citizens became followers of Buddha. His followers were called Buddhists. Buddhism got the shelter of kings like Ashoka, Kanishka and Harsha. These kings spread Buddhism to countries like Sri Lanka, Burma, Sumatra, Java, China, Japan, Tibet etc.


Thoughts of Lord Buddha


  The foundation of all wrong actions is from the mind, if the mind is transformed and pure, then wrong deeds cannot remain.


   There is no punishment for anger, but punishment is given for the mistake done by your anger. ,


   Hate cannot be eradicated by hatred, but it can be eliminated only by love, which is a natural truth.


 One should not get entangled in what has passed and should not be too worried about the future, rather we should live in the present, this is the way to live happily. ,


 Don't exaggerate what you have, and don't be jealous of others. One who is jealous of others does not get peace of mind.


One can make only two mistakes while walking on the path of truth; Don't go the whole way, and don't even start it.


    Happiness is not about having too much. Happiness is about giving too much.

RAGHUVIR SINGH PANWAR



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